“नित ढलता सूरज कहता जाए” ©अमित कुमार दवे,खड़गदा
नित ढलता सूरज कहता जाए
कर्म सतत् कर लो जग वालों
लाख जतन फिर करने पर भी
गति काल की नहीं रुकने वाली
नित ढलता सूरज कहता जाए।।
सबक बहुत ही समझा जाता
जो कुछ लगता तुझको अपना
सबकुछ बस जग की माया है
नित ढलता सूरज कहता जाए।।
जो सतत् वही विजयी जग में
रुका वही जन भटका मग में
सतत् गति तू जीवन की जान
नित ढलता सूरज कहता जाए।।
सस्नेह प्रस्तुति
©अमित कुमार दवे,
खड़गदा, राजस्थान