निज स्वार्थ ही शत्रु है, निज स्वार्थ ही मित्र।
निज स्वार्थ ही शत्रु है, निज स्वार्थ ही मित्र।
निराशा मिली तो शत्रु है, आशा मिली तो मित्र।
स्वार्थपूर्ण इस जगत में, नि:स्वार्थी है बस मित्र।
संगी साथी असंख्य मिले, मिले न कोई मित्र।
सबके मन एक आश है, श्वान सा हो मेरा मित्र।
इक रोटी के फेर में, महकाए आंगन इत्र……..।