निजीकरण
निजीकरण
विशाल अपने शहर के रेलवे स्टेशन की टिकट खिड़की पर टिकट लेने के लिए खड़ा हुआ।
बुकिंग बाबू मोबाइल फोन के स्क्रीन पर ऊंगलियाँ मार रहा था। सोशल साइट पर व्यस्त था।
जिसने ऊपर नजर उठाए बिना ही, सामने के निजी टिकट बूथ की ओर इशारा किया और कहा, “टिकट वहाँ से ले लो।”
विशाल ने कहा, “यहाँ क्या समस्या है?”
टिकट बाबू बोला,”वहाँ क्या समस्या है? वहाँ से ले लो।”
विशाल बोला,”क्यों रेलवे का निजीकरण करवा रहे हो?”
टिकट बाबू ने कहा,”निजीकरण तो सरकार कर रही है।”
विशाल बोला,”सरकार के साथ-साथ आपकी अकर्मण्यता भी उत्तरदायी है।”
इतना सुनकर टिकट बाबू मोबाइल फोन जेब में डाल कर, टिकट काटने लगा। निजी बूथ सुनसान हो गया। टिकटार्थियों की कतार टिकट खिड़की पर लग गई।
-विनोद सिल्ला©