निकल घर से न पाएंगे ये तो सोचा नहीं था (6 मुक्तक)
1
आजकल मन उदास रहता है
करता एकांत वास रहता है
ज़िन्दगी हल तेरे सवालों को
करने का बस प्रयास रहता है
2
निकल घर से न पाएंगे ये तो सोचा नहीं था
हो यूँ मज़बूर जाएंगे ये तो सोचा नहीं था
कभी अपने ही अपनों से यहाँ ऐसे डरेंगे
खुदी दूरी बनाएंगे ये तो सोचा नहीं था
3
ज़िन्दगी आसान पहली सी नहीं तू
बदली है पहचान पहली सी नहीं तू
तेरी राहों पर बिछी है आग ही बस
देती है मुस्कान पहली सी नहीं तू
4
अब महकती इन हवाओं से भी डर लगता है
इन घिरी काली घटाओं से भी डर लगता है
बन्द रहने लगे हैं अपने घरों में ही हम
क्या करें अब तो सदाओं से भी डर लगता है
5
मुस्कुराहट में छिपाना चाहती हूँ
दर्द मैं तुझको हराना चाहती हूँ
उग्रता तो दर्द की देखी सभी ने
सब्र मैं अपना दिखाना चाहती हूँ
6
अमीरों से गरीबी को मिला उपहार है देखो
बिछड़ इनसे गया अब इनका ही घरबार है देखो
मगर अफसोस इससे भी बड़ा इस बात का हमको
कि कैसे हो रही मानवता की अब हार है देखो
22-04-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद,(उ प्र)