निःशब्दता हीं, जीवन का सार होता है……
आँखों के आगे जब सपने बिखरते नज़र आते हैं,
तन्हाइयों में खुद के स्वर हीं सबसे ज्यादा सताते हैं।
ये जहन कितना कुछ कहने को बेकरार होता है,
पर हमें सुनने को कोई, कहाँ तैयार होता है।
हमारे हर पल का भले वो हक़दार होता है,
पर जब बारी हमारी हो तो वही सख्श दरकिनार होता है।
धुँधलाती आँखों में आँसुओं का व्यापार होता है,
और, धड़कनों को उसके शब्दों का इंतजार होता है।
अंधकार में अपने साये से भी कहाँ प्यार होता है,
साँसे रुके फिर भी सुकून का ठिकाना उस पार होता है।
जिंदगी की कसौटियों पर चलना हर बार होता है,
अपनी हीं नाव डुबो जाए, ऐसा भी मांझी के साथ कई बार होता है।
जलती आँखों में नींदे नहीं, शब्दों का प्रहार होता है,
और अंततः निःशब्दता हीं, जीवन का सार होता है।