निंद भी कितनी प्यारी होती है
नींद भी कितनी प्यारी होती है
हर ग़म से ये न्यारी होती हैं
सवारी की न इन्हें जरुरत
ये कहीं भी आ जाती हैं
ग़म और खुशी से ये दुर
इनके आगे क्या धनवान क्या मजदूर
इसने सबको एक समान देखा
न की ये कोई लेखा जोखा
अमीर गरीब क्या ऊंच नीच
मांगना पड़ें ना किसीको निंद
थके शरीर तो फिर ये झुम के आते
थके हुए को अपने आगोश में सुलातें
कण कण पर हैं ये रोब जमाता
इनका रोब कण कण को सुख पहुंचाता
जिन्हें समय पर निंद नहीं आता
उसका सुख चैन खत्म हो जाता
रेश्मी विस्तर या टुटी खाट
हर जगह पर देखा निंद का ठाट
हुई रात पर निंद की राज
रौशन राय का कविताएं साज
कविता – रौशन राय का
तारीक – 26 – 11 – 2021
मोबाइल – 9515651283/7859042461