ना वो हवा ना वो पानी है अब
नित रोज़ नई कहानी है अब
ना वो हवा ना वो पानी है अब
लोग खो गए हैं भ्रम के सायों में
ना वो बचपन ना वो जवानी है अब
ना वो हवा……………
किसी को फ़िक्र नहीं किसी की
किसी को चाह नहीं जिंदगी की
दौड़ते हैं सुबह से शाम तक ऐसे
जैसे दो ही पल की जिंदगानी है अब
ना वो हवा..………
प्रेम की भाषा को सब भूल गए
नशे में जाने क्यों सभी झूल गए
संस्कारों पर पानी फिर गया ऐसे
हो चली नैतिकता की रवानी है अब
ना वो हवा ना..……….
हर एक दिल में है कशिश कैसी
ये इंसानियत में है दबिश कैसी
‘विनोद’समेट लो जिंदगी को ऐसे
जैसे मौत हीआखिरी निशानी है अब
ना वो हवा………….