ना रहीम मानता हूँ मैं, ना ही राम मानता हूँ
ना रहीम मानता हूँ मैं, ना ही राम मानता हूँ
कर्म ही बड़ा है इसीलिए, मैं बस काम जानता हूँ
धर्म मजहब के नाम पर, सदाचार खो रहे हो
जानते हो पर शिक्षा का, बस व्यवहार खो रहे हो
जिसको मिला भगवान, नहीं एक नाम जानता हूॅ॑
सत्ता का है सब खेल, देखो मंदिर बनवा रहे
समझते हो भला क्यों नहीं, विद्यालय खुलवा रहे
शिक्षित भी हैं जब मूक, मैं तो अज्ञान मानता हूॅ॑
जाकर किसी फकीर को, लकीर मत दिखा
मत बैठ भरोसे भाग्य के, मिले दो हाथ हैं कमा
जिसने किया है कर्म, मिली पहचान जानता हूॅ॑
लेकर गुरू से ज्ञान तुम, तकदीर बना लो
अंधकार को मिटा ह्रदय में, ज्योति जला लो
होंगे तब ही पूरे सभी, तेरे अरमान मानता हूॅ॑
जागे बिना इंसान के भी, हल न निकलेगा
“V9द” कितनी सीख दे, पर कुछ न बदलेगा
देना होगा हर एक जगह, इम्तिहान जानता हूॅ॑