ना जाने कितनी थकानों के बाद निकले हैं,,
न जाने कितनी थकानों के बाद निकले हैं।
ये रास्ते जो ढलानों के बाद निकले हैं।।
हमें नमाज़ की अज़मत बताने वाले लोग।
हमेशा घर से अज़ानों के बाद निकले हैं।।
किसी ने अर्श को पहले ही नाप डाला है।
तुम्हारे पर तो ज़मानों के बाद निकले हैं।।
अधूरे ख्वाब की ताबीर भी अधूरी थी।
तमाम सांप ख़ज़ानों के बाद निकले हैं।।
तुम्हारी बज़्म से उठने का दिल नहीं करता।
कभी कभी तो दीवानों के बाद निकले हैं।।
——-//अशफ़ाक़ रशीद