*ना जाने कब अब उनसे कुर्बत होगी*
ना जाने कब अब उनसे कुर्बत होगी
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ना जाने कब अब उन से कुर्बत होगी,
उस दिन दिल की पूरी हसरत होगी।
मन मे जागी हैँ मिलने की आशाएँ,
जब हम से मिलने की फुरसत होगी।
आये ना कोई बाधा इस जीवन में,
हिय से उसदिन गायब नफरत होगी।
मरते-रहते हर दिन हम अरमानों में,
पैदा तन – मन मे कुछ हरकत होगी।
गम की काली रातें आती रहती हैं,
ख़ुशियों में आखिर यूँ बरकत होगी।
गाते रहते हम हर दम नगमें-गजलें,
मनसीरत के हक में कुदरत होगी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)