ना छेड़ सखी मन भारी है
दिन दिनांक – मंगलवार, ३१ दिसम्बर-२०२४
विषय – करुण रस
विद्या – कविता
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ना छेड़ सखी मन भारी है,
नैन निशा सारी जागी है,
स्वप्न है न आस कोई अब,
विरहन वियोग में हारी है !
क्यों छोड़ गए बिन बताये,
कैसे कब उन्हें हम सताये,
काहे ना कछू विचारी है,
मुझ पे वक्त बड़ा भारी है !
ना छेड़ सखी मन भारी है
ना छेड़ सखी मन भारी है!!
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स्वरचित :डी के निवातिया