नाहक ही बेकार
ज्ञानी का लागे वृथा,…..लिया हुआ सब ज्ञान !
दिया नही यदि और को,उसमे से कुछ दान !!
कह पाऊँ वो ही नही, …..कहनी है जो बात !
फिर तो करना व्यर्थ है,जग जाहिर जज्बात ! !
नहीं दिया जब तृषित को, पानी एक गिलास !
व्यर्थ और पाखण्ड तब,.लगता है उपवास !!
हुआ नहीं लोहा गरम , रहे हथौड़ा मार !
लाजिम है यूँ वार का, हो जाना बेकार !!
विगत कभी आता कहाँ , चला गया इक बार !
समय किया जो आपने… .नाहक ही बेकार !!
रमेश शर्मा.