नास्तिक हु आस्तिक तुम भी नहीं,
**जीवन अभिनय
दुनिया एक मंच
फिर काहे कि जाति
काहे का पंथ,
.
**भूलना मत
उसी तरह दुनिया देखी है,
जैसे सबने देखी है,
शिखा रख तू
श्रेष्ठ कैसे ?
सिखों ने तो जैसे केश मिले वैसे रखे है,
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महेंद्र तू पढ़ लिख अनुभव से वैध बना है,
तू जन्म से निर्विरोध कैसे है,
कुछ लज्जा रख,
शर्म कर,
तूने तो तथाकथित ईश को जवाब देना है,
महेंद्र तो खुद जिम्मेदार है,
.
अप्प: दीपो भव:
महेंद्र नास्तिक है,
आस्तिक तुम भी नहीं,
जागरण स्वभाव है मेरा,
बेचैनी मेरी झलक नहीं,
सतत हु शांत हु
मुँह खुले विस्फोटक ज्वाला हु
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डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,
रेवाड़ी(हरियाणा)