{{{ नाशाद तबियत }}}
हमको इन तन्हाइयों से अब मोहब्बत हो गई ,
जाने क्यों सारे ज़माने से शिकायत हो गई ,,
कुछ मुकद्दर में कमी , कुछ गर्दिशे – हालात थे ,
आपकी रहमत में भी थोड़ी किफायत हो गई ,,
अब कहाँ हैं ताब ,जो सह पाए ज़माने के सितम ,
ग़म की कुछ ज्यादा ही अब हम पर इनायत हो गई ,,
मुख्तसर सी बात कह के आप तो चुप हो गए ,
आपके इल्ज़ाम से कैसी कयामत हो गई,,
साथ अपने ले गए उम्मीद ,हसरत , आरज़ू ,
याद जो बाकी रही ,हमको नियामत हो गई ,,
हम दवा करते रहे और दर्द दिल बढ़ता गया ,
ज़ख्म कुछ ऐसे थे कि नाशाद तबियत हो गई ,,
क्या खूब हमको प्यार का हासिल मिला ,
गैर तो थे गैर अपनो से भी अदावत हो गई ,,