नाव को फेक
2122:1212: 2211: 2122: 2 फर्क पड़ता नही…ं
sushil yadav
sushil yadav
कविता
July 7, 2017
नाव को फेंक, पाँव में, जो भँवर बाँध लेते हैं
लोग नादान जीने का अजब हुनर बाँध लेते हैं
फर्क पड़ता नही जमाने को मेरे होने का शायद
एवज मेरे यहां घरो में जानवर बाँध लेते हैं
देख बारिश संभावना, परिंदे अपनी समझ से ही
आप तिनका उठा कहीं पास शजर बाँध लेते हैं
जो निवाले तलाशते, बीता बचपन उसे ढूढते
खौफ चलते हमी सरीखे लो शहर बाँध लेते हैं
लोग चुप हैं, कि हादसा छूकर निकला नही वरना
एहतियातन वही गठरियों पत्थर बाँध लेते हैं
सुशील यादव::: न्यू आदर्श नगर दुर्ग : ५.७.१७