नारी_व्यथा
#नारी_व्यथा
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वर्तिका बन जली दीप माध्यम बना, किन्तु गुणगान जग में उसी का हुआ।
प्रेम पर्याय है त्याग का बोलकर, नित्य सम्मान जग में उसी का हुआ।
हर व्यथा को हृदय में समेटे हुए,
प्रीति के छिद्र को मैं सदा ही सिली।
साधना में सतत् लीन मैं ही रही,
पूर्णता आज मुझसे उन्हें है मिली।
वेदना की अगन में जली साधिका, किन्तु क्यों मान जग में उसी का हुआ।
वर्तिका बन जली दीप माध्यम बना, किन्तु गुणगान जग में उसी का हुआ।।
वर्ष चौदह गये थे लखन के बिना,
उर्मिला बन विरह में तड़पती रही।
विष पिया प्रेम में और मीरा बनी,
कृष्ण के प्रीति में नीर बनकर बही।
मैं निहित प्रेम के नित्य मिटती रही, किन्तु अनुमान जग में उसी का हुआ।
वर्तिका बन जली दीप माध्यम बना, किन्तु गुणगान जग में उसी का हुआ।।
स्वार्थ परिणाम होता नहीं प्रेम का,
भक्ति के भाव का शुद्ध आधार है।
पाक पावन सुखद बोध निर्मल सरस,
जो विजय त्याग दे यह वही हार है।
नित्य भंजन तिमिर सङ्ग दोनों जले, कीर्ति का गान जग में उसी का हुआ।
वर्तिका बन जली दीप माध्यम बना, किन्तु गुणगान जग में उसी का हुआ।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’