नारी
वो एक नदी बनकर, चुपचाप बही बरसों
फूलों को बचाने में, बन खार रही बरसों
ये त्याग समर्पण की, नारी की कहानी है
वो वक्त के साँचे में, खामोश ढली बरसों
कुछ अपने लिये अब तक, नारी ने नहीं चाहा
कर्तव्यों की राहों पर, निर्भीक चली बरसों
पाकर भी हुनर कितने, अबला ही वो कहलाई
कुछ करके भी दिखलाऊँ, ये चाह रही बरसों
है आज सफल नारी, उड़ती है गगन में वह
ज़ंजीर गुलामी की, जो पकड़े रही बरसों
सपने वो हकीकत बन, अब पास है नारी के
आंखों में जिन्हें रखकर ,थी उम्र कटी बरसों
है ‘अर्चना’ कुछ किस्मत, कुछ बदला ज़माना है
नारी की चलेगी अब, पुरुषों की चली बरसों
25-02-2022
डॉ अर्चना गुप्ता