नारी
कई बार मन मे प्रश्नों के उबाल आते हैं ..
आखिर नारी के व्यक्तित्व पर प्रश्न क्यों उठाये जाते हैं ?
नारी पुरुषों से कम कभी थी ही नहीं ..
वो तो तुम्हारी अभिशंका है कि तुम अपने बराबर कभी मानते ही नहीं..
‘प्रकृति पुरुषात्मकम् जगत्’ ऐसा वेद कहता है ।
फिर खुद से भिन्न हर कोई क्यों समझता है ?
वह शक्ति है, प्रकृति है, माँ है, बहन है, पुत्री है, और है वह भार्या,
उसके अनेकों रूप है फिर भी तुम्हारी समझ मे कभी न आया ।
तुमने सदियों से नारीयों को चार दीवारी में कैद रखा ,
थोपी अपनी मन मर्जी और उसे अधिकारों से वंचित रखा ।
तुमने उसे इतना बड़ा घूँघट क्यो दे दिया ?
तुम भी तो पुरुष हो, पर्दा होने से तुमने खुद को क्यों बचा लिया ?
वही नारी जो नौ माह गर्भ में रखकर अंत मे प्रसव पीड़ा सहकर तुम्हे इस संसार मे लाती है,
वही नारी जो तुम्हारी कलाई पर एक धागा बांधकर तुम्हारी रक्षा की कामना करती है ।
हां वही नारी है जो सात फेरों के बन्धन में तुम्हारे साथ बंध जाती हैं।
वही नारी जो तुम्हारे घर में लक्ष्मी के रूप में आती है..
एक पुरुष और उसके परिवार के लिए वह अपना सब कुछ छोड़कर आ जाती है,
तुम्हारा गोत्र, तुम्हारी जाति, तुम्हारे रीति रिवाजों को अपनाती है।
जिस कन्या को गर्भ में तुम मारने का षड्यंत्र रचते हो।
फिर क्यो दुर्गाष्टमी में उसी कन्या के पूजन को तुम तरसते हो ?
कन्या का जन्म होते ही तुम उसे बोझ मानने लगे,
तुम्हारा ही तो अंश है वो फिर क्यों उसे पराया समझने लगे ?
तुमने दहेज के लिए उसे बार बार प्रताड़ित किया ,
उसकी भावनाओं को रौंदकर तुमने स्वयं को कलंकित किया ।
फिर भी उसका इस धरा पर वह सम्मान क्यों नहीं जिसकी वह हकदार है?
तुम्हारी ही तरह उसे भी खुली हवा में जीने का अधिकार है ।
नारी का व्यक्तित्व मैं आज तुम्हे मैं बताता हूँ
इन नारीयों से तुम्हें पुनः अवगत करवाता हूँ
मैं उस झाँसी की रानी की बात कर रहा हूँ –
जो 1857 की क्रान्ति में पीठ पर अपने शिशु को बाँधकर रण में ज्वाला सी धधक रही थी ।
मैं उसी रानी कर्णावती का जिक्र कर रहा हूँ –
जो इस देवभूमि की सत्ता कब्जाने आये मुगलों को खदेड़ती ही जा रही थी ।
उसने संकेत दिया मुगल बादशाह को, पहाड़ की नारियां घास ही नहीं दुर्दान्तों के नाक भी हैं काटती है
हां मैं उसी तीलू रौंतेली का वर्णन कर रहा हूँ –
जो 16 वर्ष की अल्पायु में बाप और भाई का बदला लेने रण में कूद गई थी ।
मैं उस माँ पद्मावती की बात कर रहा हूँ
जो अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए सोलह सौ नारियों के साथ चित्तौड़ में जौहर कर गयी थी..
वीर तुम भी थे तो वीरांगनायें ये भी थी
इन्होंने भी स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दी थी
फिर भी इस आर्यवर्त में न जाने कितनी सीताओं को हर बार अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है ।
इतिहास शास्त्र पुराण सब धरे के धरे रह गये ,
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: कहते रह गये ।
कब तब इस धरा पर नारी को तिरस्कृत किया जाएगा ?
फिर कब तक रे मानव तू अपने अस्तित्व बचा पायेगा ?
नारी को स्वयं से कभी भी कमज़ोर ना समझे,
सृजन करना है या विनाश दोनों उसी पर निर्भर है ।
– अमित नैथानी ‘मिट्ठू’ ( अनभिज्ञ )