नारी
******नीर (चौपाई)******
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नारी नैनन से नीर बहे।
हृदय में जब जब पीर रहे।।
अकेली ही कष्ट दर्द सहे।
निज मुँह से न दो शब्द कहे।।
प्रेयसी नीर बहुत बहाती।
मन की जरा न बात बताती।।
दिल ही दिल मे है सह जाती।
पिया की बड़ी याद सताती।।
कैसे हरती हिय की व्यथा।
कठिन बहुतेरी जीवन कथा।।
बढ़ती हुई जैसे हो लता।
मूलतः दे तन मन को सता।।
स्त्रीत्व का कोई ना सानी।
ना कर सकती वो मनमानी।।
मनसीरत समझे नादानी।
चलती आई यही कहानी।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)