नारी
मैं आग हूँ मैं राख हूँ,
मैं पानी हूँ सैलाब हूँ,
ऊपर से शांत सुशील मैं,
मन से जंग का मैदान हूँ,
मैं पत्थर भी शीशा भी मैं,
अभिशाप हूँ गीता भी मैं,
इस धरती की जान हूँ,
मैं भोले का वरदान हूँ,
मैं नारी हूँ।
मैं आग हूँ मैं राख हूँ,
मैं पानी हूँ सैलाब हूँ,
ऊपर से शांत सुशील मैं,
मन से जंग का मैदान हूँ,
मैं पत्थर भी शीशा भी मैं,
अभिशाप हूँ गीता भी मैं,
इस धरती की जान हूँ,
मैं भोले का वरदान हूँ,
मैं नारी हूँ।