नारी
महाशृंगार_छंद_सृजन_
ईश करते नारी में वास,यही देवी दुर्गा अवतार।
भरे नित जीवन में उल्लास,जगत जननी ये पालन हार ।
बहन ,बेटी, बहु, भाभी, मात,
लिये नारी ने कितने रूप।
जगत में करें सृजन का काम,
रूप धर-धर कर कई अनूप।
बना नारी से ही घर स्वर्ग, एक सुखमय सुन्दर परिवार।
ईश करते नारी में वास,यही देवी दुर्गा अवतार।
मात बनकर देती आशीष,
सदा देती पत्नी बन साथ।
बहन बन करती लाड़- दुलार,
प्रेम की डोरी बाँधे हाथ।
सुगंधित नारी है वो पुष्प,महकता है जिससे घर-द्वार।
ईश करते नारी में वास,यही देवी दुर्गा अवतार।
सती सावित्री-सी है शक्ति,
बने जो अपने पति की ढ़ाल।
सदा रखती हौसला बुलंद,
मौत को भी देती है टाल।
करें विपदा सारी ये दूर,दुष्ट का करती हैं संहार।
ईश करते नारी में वास,यही देवी दुर्गा अवतार।
सुनो!नारी तेरा नारीत्व ,
किसी का कभी नहीं मोहताज।
भला क्यों बनी हुई लाचार,
आज लुटती है तेरी लाज।
सहो मत अपना तुम अपमान,मिटा दो रिपु को कर दो क्षार।
ईश करते नारी में वास,यही देवी दुर्गा अवतार।
उठो करना है युग निर्माण,
खड़े हो जाओ सीना तान।
तोड़ कर के बंदिशे तमाम,
गढ़ों नारी नूतन प्रतिमान।
जगत का नारी ही है मूल,सृष्टि की नारी है आधार।
ईश करते नारी में वास,यही देवी दुर्गा अवतार।
-लक्ष्मी सिंह