नारी
::;::::::::;::::;:कुछ दोहे :::::::::::::::::
::;:::::%::::शीर्षक – नारी::::%:::::::::
नारी खुली किताब है , धारे कितने रंग
जीवन जीने के सदा , रखती लाखों ढंग
नारी के ही सुत हुए , श्री कृष्ण और राम
दुष्टों का मर्दन किया, अमर कर गये नाम
अबला नारी मत समझ, सबला अपनी मात
दुनियाँ में लाने तुझे , खाई तेरी लात
नारी , नारी जग करे, बिन नारी सब खार
माँ वनिता औ बहन बन, बांटे जग को प्यार
…………………………………………..
खेल रहे हैं खेल सब, कितने उल्टे दाँव
गले मिलाते प्यार से,घायल करते पाँव
बुरा कोई न मानियो , खूब उड़ाऊँ रँग
जमकर होली खेल संग, गले उतारू भंग
मात-पिता का ही सुनो, सदा रखो तुम मान
दुनियादारी त्यागकर , धरो प्रभु का ध्यान
धरो प्रभु का ध्यान तुम, करने जग कल्याण
अमर नाम हो जाएगा , देकर अपने प्राण
बीती बात बिसार कर , मत सोचो अपघात
क्या रखा इस बैर में, कर लो दिल की बात
❤दीन, हीन को देखकर , पूछो मन की बात
मंदिर-मस्जिद से बड़ा ,मिले पेट भर भात
??????आपका योगेन्द्र योगी