नारी
नारी पर कविता
नारी त्याग की मूर्ति है
दया ,ममता , प्रेम की
सागर में डूबती है
नारी सोलह श्रगांर का
स्वाभिमान है
घर गृहस्थी की धन धान्य मान है।
नारी, सीता सी सरल पतिव्रता
शंकुतला जैसी पवित्रता
मण्डदोरी जैसी दयालुता
यशोदा जेसीं पालन माता है ।
आज की नारी इंद्रा जेसीं
सामाजिकता ,राजनीतिक्ता
त्याग की मदर टेरेसा माँ
साहस की राजमाता
वसुंधरा है ।।
राजनीति में
बीहारी राबड़ी देवी
सुंदरता की श्री देवी
न जाने किस दौर में
फिल्मी नायिका है
नारी जग की निर्माता
दुःख हर्ता ,पालन करता
घर घर में खुशियों का उजाला हैं ।
अब नर नारी एक समान ,,
न रहे अब किसी प्रकार का
भेदभाव ,,
बदलो अब मर्द अपना नारी के प्रति मटमैला स्वभाव ।
वो ईश्वर का दिया वरदान
नो माह में कोख में तुझे
रख कर पहरा देती,,
भूख लगे तो दूध पिलाती ।
तू धन्य है इन्सान जो इसकी वजह से तू जग देख रहा है,,
पर अपने को बर्बादी का राह पर ले जाकर क्यों
लाखो की शराब पी रहा है ।
क्यों तू हँसते हंसते परिवार को नारी को दोष देकर
उझाड़ रहा है।
उस भूखे प्यासे बिखलते बच्चो के भविष्य की क्यों
दांव पर लगा रहा है ,,
फिर भी, वो रोती अबला नारी
फटी साड़ी से दुखी पहाड़ों की और आसमान को निहार रही है।
आज प्रवीण की कलम भी नारी की दशा पर बखान कर
अपने को नतमस्तक की और शीश झुका रही है ।।
✍✍प्रवीण शर्मा ताल
त्तहसील ताल
जिला रतलाम
स्वरचित
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दिनांक 8/7/2018