नारी
मैं एक नारी हूँ।
हाँ, मैं अबला नहीं, मैं सबला नारी हूँ,
मैं एक कर्तव्यनिष्ठ, महत्वाकांक्षी नारी हूँ,
हाँ, मैं एक नारी हूँ।।
लोग जितना सोच भी नहीं सकते,
उतनी सामर्थ्य से परिपूर्ण हूँ,
जिम्मेदारियों के बोझ को ढोते-सहते,
मुख पर मुस्कान लिए अपना कर्तव्य निभाती हूँ,
मैं एक शांति और दुर्गा का प्रतिमान हूँ,
हाँ, मैं एक नारी हूँ।।
चाहे मैं बंद रहूँ चारदीवारी में,
उर्दू खुले आकाश में, अपनी कल्पना की उड़ान जगाए ,
रखती हूँ, मुश्किल आये कितनी राह में,
जीवट व साहस से सामना करती हूँ,
मैं एक सहनशील, ईश की अद्भुत रचना हूँ,
हाँ, मैं एक नारी हूँ।।
नर की दृष्टि में चाहे मैं अबला कहलाती हूँ,
पर मैं कमजोर नहीं क्योकि सृष्टि को बढ़ाती हूँ,
अपने ही अस्तित्व को खोजते-झाँकते,
जीवन निर्वाह कर रही हूँ,
मंजिल को पाने की ललक में,
लक्ष्य पथ पर गतिमान हूँ,
अब खतम करना होगा,
इन अबला व सबला शब्दों को,
जो नारी के अस्तित्व से मेल नहीं खाते,
क्योकि मैं भी नर जितनी ही श्रमशील व मजबूत हूँ,
हाँ, मैं एक नारी हूँ।।