नारी
नारी
सामाजिक कायदे में दबी हुई ,
दुर्लभ बेचारी हैं l
परिवार का बोझ उठाना,
मनो उसकी जन्मसिद्ध ज़िम्मेदारी हैं l
नाजुक कन्धों पर ,
बल का प्रभाव पड़ा भारी हैं l
दूसरों की अभिलाषा में फसी हुई ,
वह सहनशील नारी हैं l
क्यों पीड़ा सहे वो ?
दुर्व्यवहार कब तक सहती रहे वो ?
जब नारी ही कल्याण हैं ,
शक्ति का प्रमाण हैं ,
ममता की मूरत हैं ,
और देवी-सी उसकी सूरत हैं l
ईश्वर की अद्भुत आकृति के रूप में ,
नारी ही उभर कर आई हैं l
और जीवन देने की शक्ति इसी में समाइए हैं l
सच तो यही हैं,
जहाँ मान हैं इसका ..
वहीं जगत की खुशियाँ समाई हैं ….