नारी है सम्मान।
नारी है सम्मान,
हमारे घर का।
आन है,मान है,
हमारे घर का।।
इसके बिना है सुना,
परिवार ये हमारा।
घर को है स्वर्ग बनाना,
काम है ये इसका।।
सहन शक्ति ना पूंछों,
जानें कहां से लाती है।
सबकी खुशियों की खातिर,
दुख अपने भूल जाती है।।
पृथ्वी की तरह,
वसुंधरा ये होती है।
धरा की तरह,
परिवार का बोझ ये ढोती है।।
लबों पे इसके,
मुस्कान सदा रहती है।
अपने दुख को कभी,
ये ना किसी से कहती है।।
सन्तान की खातिर,
सभी से ये लड़ती है।
समय आने पर,
दुर्गा,काली का रूप धरती है।।
निस्वार्थ आदर,
सभी का ये करती है।
फिर भी नारी को,
इज्जत सभी से ना मिलती है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ