नारी है न्यारी
जब भी छाए दुखों के बादल,
डाल लिया तूने उन्हें आँखों में बना काजल ।
है नारी वो डोर, जिसका न कोई छोर ।
कर हर तट पार ,जोड़ती प्यार के तार में सारा संसार ।
मकान को घर बनाती,
सबके सपने नैनों में अपने बसाती।
बनकर माँ , हमराही , बहन – बेटी ,
हर रिश्ते का मान बढ़ाती ।
तू ही आसमान में उड़ती कल्पना,
कम्प्यूटर को टक्कर देती शकुंतला।
बन रंग हर एक का जीवन संवार डाला,
कभी गरजी सिंहनी सी,कभी मुँह पर लगाया ताला ।
है तू वो नदी जो लगा देती सबको पार,
है तेरे लिए अपनों के हाथ गले के हार ।
रहती तुझसे पतझड़ में भी बहार ,
लगे स्वर्ग सा तुझसे परिवार ।
बना देती तू पहाड़ सी मुसीबत को राई ,
है तू हर मैदान में लड़ती लक्ष्मी बाई ।
बन सीता तूने वनवास सहा ,
इसलिए ही तुझे त्याग की मूर्ति कहा ।
माँ बन सच की राह दिखाई,
शिवाजी को बचपन में तूने अनमोल सीख सिखाई।
तुझ में बसी है जीजा बाई,
महानता है तेरे रग- रग में समाई ।
भगवान का तू दूजा रूप कहलाती ,
मानव को तू दुनिया में लाती ।
अपनों के सुख में मुस्काती ,
दुख अपने कभी न दिखाती ।
भरा तुझमें असीम ज्ञान ,
ममता का तू सागर महान ।
देता जो तुझे सम्मान ,
देवता भी करते उसका मान ।
तेरी गोदी जीवन का सार ,
पा इसे मिटे भगवानों के भी भार ।
पाने को तेरा निःस्वार्थ प्यार ,
राम – कृष्ण बन कर आए अवतार ।
जीवन तूने अनगिनत सँवारे ,
राह न छोड़ी , ग़र मिले भी उनपर अंगारे ।
फूल कभी तूने पथ पर बिखरे ,
पड़ी ज़रूरत तो निकाली तलवारें ।
तू ही लक्ष्मी है तू दुर्गा ,
समझा तुझे जिसने भाग उसका जागा।
जोड़ता जो प्रभु से है तू वो धागा ,
है तेरा अपमान करता सिर्फ़ रावण सा कोई अभागा।
है तेरा अपमान करता सिर्फ़ रावण सा कोई अभागा।
इंदु नांदल विश्व रिकॉर्ड होल्डर
इंडोनेशिया
स्वरचित