नारी है नारायणी
नारी है नारायणी,दुर्गा काली रूप।
मर्यादा इसकी रखें,जनता हो या भूप।
जनता हो या भूप,ध्यान सबका हीं रखतीं।
करके अतिशय त्याग,सर्वहित उर से लखतीं।
कहता कविवर ओम,सृष्टि रचना यह प्यारी।
लिंग भेद को त्याग,ज्ञान पाए हर नारी।।
नारी होती है प्रबल,रखो सदा ही ध्यान।
कोमल बनती प्रेम में,ईश्वर रचित विधान।
ईश्वर रचित विधान,भाव ममता उर रखतीं।
कर पति सुत हित त्याग,स्वाद कष्टों का चखतीं।
कहता कविवर ओम,रखें धीरज भी भारी।
बनकर लक्ष्मी रूप,बसे हर घर में नारी।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम