नारी हूँ मैं
नारी हूँ मैं !
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नारी हूँ मैं !
कोई पत्थर नहीं !
मुझमें भी हैं……
एहसास
निर्मलता
और मानवता |
सदियों से ही
कहते आए हैं
मैं अबला हूँ |
लेकिन क्या ?
देखा भी है —
झाँककर कभी
मेरे अंतस में |
कितना कुछ है….
मेरे भीतर —
धैर्य
लगन
मेहनत
विश्वास
कर्मठता
जिम्मेदारी
सहनशीलता
कर्तव्यपरायणता |
इत्यादि-इत्यादि ||
कौन कहता है ?
मुझे दर्द नहीं होता !
होता है !
बेहद होता है
दर्द भी और संताप भी |
जब खेला जाता है
मेरे दिल से
छुप-छुप कर ||
किसने देखा ?
कब देखा ?
कहाँ देखा ?
क्यों देखा ?
आखिर कोई तो बताए ?
कि मैं अबला क्यों हूँ ??
पूर्ण करती हूँ
अपनी हर जिम्मेदारी
मैं इत्तमिनान से……..
बिना कुछ उफ़ किए !
सहती आई हूँ
सदियों से……..
पर ! कहती नहीं |
बस ! जीती हूँ
अपनों के लिए…..
कभी अपने लिए नहीं ||
तल्लीन रहती हूँ !
निकेत-कर्म में
सदैव चुपके-चुपके !
पर वो दिखता नहीं
सार्वजनिक तौर पर !
क्यों कि ?
मैं करती हूँ …..
तन-मन से ||
जब भी घटित होते हैं
अमानवीय और नृशंस कुकृत्य
तो कही ना कहीं ,
मुझे ही दोष दिया जाता है |
कभी मेरे लिबास के नाम पर
तो कभी मर्यादा के नाम पर |
लेकिन !
क्या सारी मर्यादाऐं
मेरे लिए ही बनी हैं |
मानती हूँ …………….
कुछ अपवाद हैं
हमारे बीच में ,
जो कलुषित करती हैं
नारी मर्यादा को
नारी सम्मान को
नारी गरिमा को
और मानवता को ||
मिलते हैं — अपवाद !
देश-काल-वातावरण में
हर वर्ग में ………..
लेकिन इसका मतलब
यह तो नहीं —
कि प्रत्येक नारी
अमर्यादित है !
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–डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”