नारी हूँ अभिशाप नहीं
नारी हूँ अभिशाप नहीं
०००००००००००००
चिड़ियों के बिन सूना आँगन, कलियाँ बिन सूनी डाली ।
कन्या के बिन सूना लगता, पूरा घर आँगन खाली ।।
जब ये किलकें खेलें चहकें, तृप्त नयन हो जाते हैं ।
जीवन में जब पुण्य फलें तो,कन्या का फल पाते हैं ।।1
०
मुझे जन्म लेने दे माता, मैं भी अंश तुम्हारी हूँ ।
बड़ी लड़ोधर हूँ पापा की , घर की राजदुलारी हूँ ।।
बचा-खुचा खाकर जी लूंगी, भैया गोद खिलाऊंगी ।
एक दिवस तेरे आँगन से चिड़िया सी उड़ जाऊंगी ।।2
०
पढ़ा लिखा कर मुझको भी माँ, खड़ी पैर पर कर देना ।
होकर बड़ी करूंगी सेवा, अच्छा सा चुन वर देना ।।
तू भी नारी मैं भी नारी, नारी होना पाप नहीं ।
सूना जग नारी बिन सारा, नारी हूँ अभिशाप नहीं ।।3
०
राधे…राधे…!
?
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
***
???
(छंद मंजूषा से)