नारी सृष्टि
नारी ! जान न पाये भेद तुम्हारा,ब्रह्मा विष्णु महेश।
रहस्य तुम्हारा जानने को, नारी ! हुआ होगा उनमें महा क्लेश।
पार न पाया होगा तुमसे,तभी प्रकृति नाम दिया।
हे नारी ! सत रज तम को उत्पन्न कर,सृष्टि रचने का काम किया।
तू ही आदि,तू ही अनादि,तेरे सिवा कुछ शेष नहीं।
छुप सकता कैसे काल भला ! ऐसा कोई भेष नहीं।
तेरे आगे सृष्टि नतमस्तक, फिर ! कर सकता क्या महाकाल भला ?
सब दौड़े तेरे आगे पीछे,पाकर संकेत तेरा ही तो यह चक्रकाल चला।
शक्ति कैसे दे दी तुमने,कलयुग के इस मानव को।
समझ न आया मुझकों, वरदान ये कैसा दे गई इस दानव को।
किये न हो इस मानव ने,ऐसा कोई अपराध नहीं।
दुष्कर्म हत्या लूटपाट से,क्या तेरी सृष्टि बर्बाद नहीं !
उठा हथियार छीन ले शक्ति,ये दुनिया अब आबाद नहीं।
नहीं रही ये देव सृष्टि, उठ ! अब हाहाकार मचा।
तुझे देखने को हे दुर्गा ! प्रकृति ने मंच रचा।
रणचण्डी बनकर ताण्डव कर,तू काली बनकर ताण्डव कर।
कर वश में अपनी सृष्टि को,कुछ और नये तू पाण्डव कर।
ज्ञानीचोर
9001324138