नारी सुरक्षा
एक छोटी सी बच्ची से लेकर
80 साल की वृद्धा तक
जिसके बस स्त्री होने से ही
हिल जाए पुरुषों का पुरुषत्व
जाग जाए उनकी विभत्स
कुत्सित वासना प्रवृत्ति
जहाँ नारी को बना कर देवी
दोहन किया जाए उसका
उसके सती होने तक
मैं उसी देश की एक नारी हूँ
जिसने बचपन से लेकर
उम्र के हर पड़ाव तक
देखें है कितने नमूने
इस विभत्स मानसिक
कलुषता के
मैं वहीं सोचती हूँ
नारी सुरक्षा और आज़ादी के बारे में
जब बोलती हूँ तो बेहया बेशर्म
लिखती हूँ तो नारीवादी फेमिनिस्ट
और आवाज़ उठती हूँ
तो कई आवाज़ें उठती हैं
मेरे समर्थन में नहीं
मुझे कुचलने जिसमे
जातिवाद से लेकर
बलात्कार तक कि
बातें कही जाती हैं
और सब मौन
मैं उसी न्याय व्यवस्था से
उम्मीद करती हूँ न्याय की
जिसमें कानून की रक्षा करने वाली तक
शिकार हो जाती है
न जाने कितनी शारीरिक
मानसिक यातनाओं की
सब चुप हैं
सोचती हूँ बेटियों को क्या
सिखाऊँ
बेहया बेशर्म बनना
या सब सहते हुए चुपचाप
नारे लगाते नारीवाद और आज़ादी का ढोंग करना