Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Sep 2021 · 5 min read

नारी : श्रृंगार और विज्ञान

शीर्षक – नारी : श्रृंगार और विज्ञान

विधा – आलेख

संक्षिप्त परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. – रघुनाथगढ़, सीकर राजस्थान
मो. 9001321438

हमारी सनातन आर्य संस्कृति में कोई भी परंपरा अतार्किक और अवैज्ञानिक नहीं है । परंपराओं के उद्भव के पीछे के हेतु अवश्य ही स्वास्थ्य,भौगोलिक,सामाजिक,देशकालीन परिस्थिति रही हैं। बहुत कुछ संभव है कि इन परंपराओं का नियमन जीवन में उत्पन्न समस्याओं के निदान के पश्चात जीवन के विकास तथा सामाजिक जीवन के लिए किया गया है ।
ऐसी ही एक प्रचलित संस्कृति नारी के श्रृंगार की है । मेरे मानस में कई दिनों से एक विचार आया कि नारी को श्रृंगार की आवश्यकता क्यों हुई ! लड़का और लड़की जन्म के समय एक समान प्राकृत अवस्था में पैदा होते हैं । पुरुष प्रायः श्रृंगार नहीं करते । एक ही प्राकृत अवस्था में जन्म लेने के बाद नारी के संस्कार अलग क्यों ! पुरुष और नारी के कार्यक्षेत्र,अधिकार,कर्त्तव्य,संस्कार में यह भेद क्यों! लैंगिक पूर्वाग्रह की अवस्था कब से हैं और कब तक रहेगी कोई नहीं जानता । न हीं कहीं लिखित साक्ष्य हमें प्राप्त हैं। इन आधारभूत प्रश्नों के उत्तर हमें कैसे मिले! नारी समूह आज भी इन प्रश्नों से विचलित भी हैं और चिरकाल से निरुत्तर भी !
मैं आपको इन प्रश्नों के उत्तर देता हूँँ। लिखित साक्ष्य भले न हो। न कालखंड का हमें पता है परंतु कुछ ऐसे तथ्य जो चिरकाल से जीवन में बने हुए हैं तथा श्रृंगार के काम आने वाले उपादान के गुणों के आधार पर इन तत्वों का एक सीमा तक हल प्राप्त है। आप इससे सहमत भी होंगे।

पुरुष और नारी के स्थूलकाय में अंतर है। पुरुष और नारी का आकार-प्रकार एक ही हैं। सूक्ष्म अंतर है। इस अंतर को हम लैंगिकता कहते हैं। प्रजनन की प्रक्रिया के प्रजननांग के चलते ही सारे संस्कार अलग है। प्रजनन की प्रक्रिया के बाद प्रसव प्रक्रिया पुरुषों में होती तो शायद पुरुषों के संस्कार नारी के जैसे होते या अलग ! प्रसव प्रक्रिया नारी संस्कार होने से ही नारी में भाव और चेष्टा की प्रवृत्ति पुरुषों से अधिक होती है ।
अपरिपक्वता के दौरान तो लड़का और लड़की एक साथ खेलते हैं । जैसे-जैसे परिपक्वता का दौर प्रारंभ होता है लड़का-लड़की अलग अपने-अपने समलिंगी समूह में रहते हैं। इसी अवस्था से नारी में श्रृंगार करने की प्रवृत्ति उभर जाती है । शारीरिक आकर्षण,मांंसल चित्रण,रतिक्रीड़ा रस ये एक अलग तथ्य है। कवि श्रृंगार को आकर्षण के वस्तुरूप में देखते हैं । कवि मनोवृति का यहाँँ चित्रण नहीं करना मुझे!
तथ्य ये है कि श्रृंगार का नारी जीवन में क्या औचित्य है ! जब कभी भी श्रृंगार के उपादान नारी जीवन के संस्कार बने उस वक्त क्या कारण रहा। इसका सटीक उत्तर तो नहीं है पर तर्क के आधार पर विश्लेषण अवश्य ही सार्थक सिद्ध है।
हमारी ऋषि-मुनि संस्कृति ने ही सारे संस्कार प्रचलित किए। पुरूष अपनी भोगलीला को लंबे समय तक जारी रखने के लिए नारी को श्रृंगार के आवरण में डालकर अनंत काल तक के लिए नारी को प्रछन्न दासता प्रदान की ।

आज जैसे सेमिनार होते हैं वैसे ही प्राचीन काल में भी विद्वानों की संगति हुआ करती थी। इन संगतियों के कई रूप थे। संगति एक ही विषय (जैसे आयुर्वेद दर्शन धर्म योग काव्य इत्यादि ) के विद्वानों की होती और विभिन्न विषय के विद्वानों की सामूहिक संगति भी ।
किसी समय ऐसी सामूहिक संगति में आयुर्वेद ज्योतिष वेद धर्म दर्शन योग धातु-विज्ञान तर्कशास्त्र समाजशास्त्र के श्रेष्ठ विद्वानों की संगति हुई होगी! उस संगति में अनेक समस्या आई , निदान और उपाय भी हुए । प्रस्ताव आया कि नारी स्वच्छंद रूप से विचरण करती है इस संबंध में कुछ हो सकता है । अर्थात इसके जीवन को पुरुषार्थ की सेवा में लगा दिया जाए! अनेक तर्क-वितर्क हुए पर सभी एक बात से सहमत थे कि पारिवारिक पालन- पोषण करना नारी का ही कर्त्तव्य है। इस कर्त्तव्य को विस्तार रूप देकर उसे पुरुषों की सेवाभावी बना सकते हैं । इस पर चर्चा लंबी चली हर विषय के विशेषज्ञ अपनी राय रखते। एक सामूहिक सहमति से निर्णय लिया कि नारी के स्वतंत्र विचरण को कर्त्तव्य और मर्यादा की डोर से बाँध दे।
परिधानों में बाह्य उपादानों को शामिल किया जाए। विद्वानों ने अपनी राय रखी उनके लाभ भी बताये । सबसे पहले योगशास्त्री ने बताया कि हमारे मस्तिष्क में भौंह और नासिका के मिलन बिंदु को त्रिकुटी कहते हैं यदि इस स्थान पर हल्का सा वजन रख दें तो त्रिकुटी नियंत्रित हो जाती है इससे मस्तिष्क शांत रहता है । साथ ही आयुर्वेदाचार्य की सलाह से योगी ने कहा सिंदूर में पारा होता है अशुद्धध पारे के सेवन से मृत्यु और शुद्ध पारद बंध ,भस्म और मूर्छित अवस्था में अमृत है । जरा का नाश करता है। यदि सिंदूर सिर में धारण करें तो मस्तिष्क और शीतल रहेगा।
धातु-विज्ञान शास्त्री ने आयुर्वेदाचार्य की सहमति से सलाह दी कि सोने और चांदी के आभूषण नारी के जीवन में डाले जाये। सोना उभय प्रकृति और चाँँदी शीत प्रकृति की है । जब शरीर में धारण करें तो स्वर्ण शरीर के ऊपरी हिस्से में और चांदी के आभूषण शरीर के नीचे के भाग में पहने। सोना जहाँँ पहनते हैं उस भाग को शीतल और विपरीत भाग में उष्णता देता है चाँँदी जहाँँ पहनते हैं उस भाग में उष्णता और विपरीत भाग में शीतलता। इस क्रम में दिमाग शांत और शीतल रहता है । कवि ने श्रृंगार उपादानों को रूप लावण्य से जोड़ दिया। संगति का परिणाम यह रहा कि विवाह संस्कार में मस्तिष्क पर बिंदी और सिंदूर,आभूषण को रुप-लावण्य बढ़ाने वाला, उपमा भी चाँँद,कमल,तारे न जाने कैसे-कैसे ! इसका प्रभाव यह रहा कि परिपक्वता आते ही स्त्री इन आभूषणों से इस तरह जकड़ी जाती है कि उसे अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान नहीं रह जाता । पुरुष अपनी प्राकृत अवस्था में रहता है जिस अवस्था में जन्म लेता है पर नारी !
विवाह संस्कार के बाद पुरुष के बाह्य उपादान में कोई बदलाव नहीं नारी का विवाह के पश्चात संस्कार की दुहाई के नाम पर प्रछन्न दासता में जकड़ दिया।
जो प्रकृति उसकी विवाह के पूर्व थी उसमें विद्रोह,जोश, साहस,उत्साह यह सब रहते हैं। विवाह के बाद ये प्रवृतियाँँ वृद्ध होने लगती है ।
कहने का आशय यह है कि जब मनुष्य मरता है तभी उसके पैर शीतल होते हैं । पैरों में गतिज ऊर्जा और ऊष्मा ऊर्जा होगी तो शरीर गतिशील और उर्जावान होगा। धातुओं की गुप्त उर्जा से नारी को और अधिक गतिशील बना दिया ।
आभूषण धातु आज धन-सम्पदा है। विवाह के अवसर पर आभूषण देना का कारण पूर्व में गुप्त ऊर्जा से शरीर को गतिशील बनाना था। भले ही आभूषण आज भविष्य निधि के रूप में है। मनुष्य का स्वभाव भले बदल गया पर धातुओं की प्रकृति नहीं बदली। आभूषण कार्य तो आज भी वहीं करता है। जकड़न भी वहीं है सोच भी वहीं !
नारी सर्वत्र स्वतंत्र पैदा होती है पर पुरुष उसे भोगलीला के कारण प्रछन्न दासता में जकड़े रहता है। किसी भी नारी के रूप लावण्य की प्रशंसा कर दो वो मंत्रमुग्ध हो जाती है फिर वो लूट जाती पुरूषों से। जो नारी इन आभूषण के भ्रमावरण से दूर है उसने इतिहास के स्वर्ण पत्रों पर अपना अस्तित्व कायम किया है। विडंबना इस बात की है कि नारी ही नारी की शत्रु है और विचार ही विचार का विरोधी। श्रृंगार नारी के अस्तित्व का सबसे बड़ा शत्रु है।

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 1736 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
* किधर वो गया है *
* किधर वो गया है *
surenderpal vaidya
🗣️चार लोग क्या कहेंगे
🗣️चार लोग क्या कहेंगे
Aisha mohan
उलझी हुई जुल्फों में ही कितने उलझ गए।
उलझी हुई जुल्फों में ही कितने उलझ गए।
सत्य कुमार प्रेमी
जब  तक  साँसें  चलती  है, कोई  प्रयत्न  कर  ले।
जब तक साँसें चलती है, कोई प्रयत्न कर ले।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
সেই আপেল
সেই আপেল
Otteri Selvakumar
तुम जा चुकी
तुम जा चुकी
Kunal Kanth
जो ले जाये उस पार दिल में ऐसी तमन्ना न रख
जो ले जाये उस पार दिल में ऐसी तमन्ना न रख
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
माँ-बाप का किया सब भूल गए
माँ-बाप का किया सब भूल गए
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
अधूरा प्रयास
अधूरा प्रयास
Sûrëkhâ
मुझसे जुदा होके तू कब चैन से सोया होगा ।
मुझसे जुदा होके तू कब चैन से सोया होगा ।
Phool gufran
वो दौर अलग था, ये दौर अलग है,
वो दौर अलग था, ये दौर अलग है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
राहों से हम भटक गए हैं
राहों से हम भटक गए हैं
Suryakant Dwivedi
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
The life of an ambivert is the toughest. You know why? I'll
The life of an ambivert is the toughest. You know why? I'll
Chaahat
प्रेम
प्रेम
Neeraj Agarwal
*ये आती और जाती सांसें*
*ये आती और जाती सांसें*
sudhir kumar
नाम इंसानियत का
नाम इंसानियत का
Dr fauzia Naseem shad
समस्याएं भी निराश होती हैं
समस्याएं भी निराश होती हैं
Sonam Puneet Dubey
अन्तस की हर बात का,
अन्तस की हर बात का,
sushil sarna
चार लोग क्या कहेंगे?
चार लोग क्या कहेंगे?
करन ''केसरा''
हृदय में वेदना इतनी कि अब हम सह नहीं सकते
हृदय में वेदना इतनी कि अब हम सह नहीं सकते
हरवंश हृदय
मां की दूध पीये हो तुम भी, तो लगा दो अपने औलादों को घाटी पर।
मां की दूध पीये हो तुम भी, तो लगा दो अपने औलादों को घाटी पर।
Anand Kumar
हम बच्चे
हम बच्चे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*स्वतंत्रता आंदोलन में रामपुर निवासियों की भूमिका*
*स्वतंत्रता आंदोलन में रामपुर निवासियों की भूमिका*
Ravi Prakash
"हिन्दी और नारी"
Dr. Kishan tandon kranti
अर्थ शब्दों के. (कविता)
अर्थ शब्दों के. (कविता)
Monika Yadav (Rachina)
नदी की मुस्कान
नदी की मुस्कान
Satish Srijan
Tlash
Tlash
Swami Ganganiya
🙅अंधभक्ति की देन🙅
🙅अंधभक्ति की देन🙅
*प्रणय*
3658.💐 *पूर्णिका* 💐
3658.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
Loading...