नारी व्यथा
” नारी-व्यथा ”
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कैसी निर्बल ?
कैसी निशक्त ?
क्यों अबला मैं बन बैठी ??
क्यों मेरा अपमान हुआ ?
क्यों मेरा चीर-हरण हुआ ?
क्यों बाजारों में बेची जाती ?
क्यों बोटी-बोटी नोची जाती ?
जर्जर होती मानवता से !
क्यों बारम्बार , खरोंची जाती ??
कभी बनाया देवदासी !
तो कभी बनाया हरमवासी !!
सदियों से क्यों सहती आई ?
क्यों अग्निपरीक्षा देती आई ?
विष प्याला भी मैं ही पीऊँ !
क्यों कतरा-कतरा मैं जीऊँ ??
जब याद करूँ मैं निर्भया को !
निर्भय होने से डर जाऊँ !
साँझ अगर हो जाए तो……
डरती-डरती घर को जाऊँ ||
क्यों लव-जेहाद का लक्ष्य बनूँ ?
क्यों बर्बादी का साक्ष्य बनूँ ?
टूटा दिल और टूटे सपने !
हर बार ही मैं क्यों भक्ष्य बनूँ ??
हे नारी तू ! खुद ही जाग ,
निर्मित कर तू अपना भाग !
“दीप” के जैसी ज्योति बनकर !
तू बता उन्हें ! जो हैं निर्भाग ||
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डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”
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