नारी मान सम्मान की भूखी
नारी मान सम्मान की भूखी
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नारी स्वरूप है बहुत प्यारा
नदियों में जैसे बहती धारा
जल सी शीत,शान्त,शालीन
चंदा सी ही मूर्त सुंदर हसीन
मृदुल,मधुर स्वभाव निराला
गगन में चमकता जैसे तारा
सहनशीलता की मूर्त प्यारी
धैर्यशील दुख में होती सारी
घर बाहर सर्वकृत निपटाती
नारी धैर्यशाली नहीं घबराती
नारी बलिदानी,स्वाभिमानी
घर परिवार की है महारानी
औरत बिन ना होता गुजारा
नारी बिना नर होता बेचारा
नर नारी सुख दुख के साथी
बहू ब्याह लाते हैं बन बाराती
नारी की आज भी ये कहानी
आँचल में दूध आँखों में पानी
मौन गौण हो कर सब सहती
किसी को कुछ नही है कहती
निज दुखड़ा कभी नहीं सुनाती
खुशी से सब कुछ है सह जाती
सजती संवरती ला बिंदी सुर्खी
नारी है मान सम्मान की भूखी
बच्चे की होतीं है प्रथम शिक्षक
पीसती रहती है ना कोई रक्षक
माँ,बेटी,बन,भार्या ये सारे नाते
खुशी खुशी निभाएं रिश्ते नाते
सुखविन्द्र नहीं कोई क्षैत्र अछूता
नारी ने गाड़ा दिया झंडा कसूता
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)