नारी पीड़ा और का-पुरुष
डा ० अरुण कुमार शास्त्री ,एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
स्त्री की व्यथा को
चार पन्क्तियों में व्यक्त करना
मानो समुद्र को एक छोटी सी
गागर में भरना ||
कैसे होगा तुमसे
ये पहाड सा कार्य, हे पुरुष
तुम ये न कर पाओगे,
बेकार छले जाओगे ||
रहने दो पुरुष हो न
पुरुष होकर एक नारी के मन को ,
अरे पुरुष तुम येन केन
पराकारेंन भी न समझ पाओगे ||
याद रहे तो एक काम
कर लेना तुम अगले जन्म
जी हाँ अगले जन्म ,
यदि जब तुम स्त्री बन के आओगे ||
भूल मत जाना देखो
मुझे नहीं तो याद दिलाना होगा
स्त्री के कर्तव्यों, पीडा का
अभिवाज्य धर्म तुमको भी निभाना होगा ||
देखो किन्चिद गर्भ वेदना से
तुम डर तो नहीं जाओगे
मुझको लगता है तुम रण छोर दास
की नीति नहीं अपनाओगे ||