नारी पर दोहे
नारी पर दोहे
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माँ बेटी पत्नी बहन,पुज्य सभी है रूप।
नारी से संसार को,ममता मिले अनूप।।
जो नारी नर को जने , प्रीति जगा संसार।
उस पर ही करता मनुज,नित नित अत्याचार।।
नारी के सम्मान में , पीट रहे जो ढोल।
जो दिखता वह है नहीं,खुल ही जाता पोल।।
जग में कब का हो चुका,मानवता का अंत।
कामी भी जग लूटने , बन जाते है संत।।
रोज अधर्मी हर रहे , शील सुता का शील।
धिक धिक इस कानून पर,देता इनको ढील।।
जिनको होना चाहिए,जीवन भर का जेल।
वह समझे कानून को,निज हाथों का खेल।।
संविधान में जो लिखा,कानून का विधान।
भूल गए अब तो मनुज, बाबा का अवदान।।
नारी के सम्मान में,हृदय जलाकर दीप।
बेटी की रक्षा करो,ज्यों मोती को सीप।।
कोहिनूर जग से करे,विनती बारम्बार।
बेटी के सहयोग में,रहना नित तैयार।।
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रचनाकार – डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”