नारी तेरे रूप अनेक
परमात्मा की सबसे प्यारी कृति है नारी।
नारी में निहित की उसने जग की शक्तियाँ सारी।।
ईश्वर ने ह्रदय दिया है उतना ही कोमल।
जितनी सृजित की यह आकृति प्यारी।।
ममता का प्रतिरूप बन हम सब की जिंदगी निखारी।
करुणा प्रेम और त्याग से उसने संवारी दुनिया हमारी।।
भांति-भांति रूप और रिश्तों ने,
माता बहन पत्नी और बेटी के रुप में
पल- पल बनती संरक्षक नारी।
उसके अस्तित्व से ही महक रही है,
संसार की यह सुंदर फुलवारी।।
यह वो हस्ती है कि जिस से महके,
हर घर की क्यारी – क्यारी।
कोई न समझे अबला इसको,
समझे न कोई उसको दुखियारी।।
समाई इसमें ब्रह्मांड की शक्तियाँ सारी।
हर मानव का प्रादुर्भाव उसी से,
वह सृष्टि के अस्तित्व की सूत्रधार सारी।।
जननी है वह ,वह है
मानव की उत्पत्ति की अधिकारी।
दुर्गा का पराक्रम हो या सीता का त्याग।
राधा का प्रेम या मीरा का वैराग।।
विदित है सभी को द्रोपदी का धैर्य,
न छिपा किसी से लक्ष्मी बाई का शौर्य।।
न कहिए उसको बेचारी।
नही है वह बेबस न कोई लाचारी।
बुराई तो छिपी है खुद जड़ों में हमारी।
यदि नारी का साथ दे जग की हर नारी,
तो नारी शक्ति पड़ेगी इक दिन,
दुनिया की हर शक्ति पर भारी।
तब सम्पूर्ण विश्व में कोई नहीं,
हिला सकेगा जड़ें हमारी।
क्योंकि नारी में ही है शक्ति,
नारी में ही है दुर्गा, नारी में समाई सृष्टि सारी।
वही है आदर्श हमारी,
जय हो नारी। शत-शत वन्दना है तुम्हारी।
—-रंजना माथुर अजमेर( राजस्थान)
दिनांक 08/03/2017
(स्व रचित व मौलिक रचना)
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