नारी तेरे रूप अनेक
नन्हीं परी रूप धर जन्म लिया
मारत किलकारी खेलत कुमारी
तनिक बडी़ हुई
चूल्हा – चक्की संभाली
मात-पिता को सहाय दिया
भाईयों के लिए सदा त्याग किया
जब जौवन भई सुकुमारी
आ गई अब ब्याह की बारी
ब्याह होत नव रूप धरा
पत्नी ,वधु ,भाभी का रूप लिया
दो-दो कुलों की लाज बन
दोनों कुलों की लाज निभाती
नव रिश्तों को खूब निभाती
एक दिवस फिर ऐसा आया
भरी गोद और एक शिशु जाया
जीवन में फिर एक नव रिश्ता आया
माता बन शिशु को दूध पिलाया
बच्चों की परवरिश़ कर बडा़ किया
फिर उनका भी ब्याह किया
पुत्रवधु जब घर आयी
नव रिश्ता फिर साथ में लाई
सास बन नव जिम्मेदारी पाई
फिर पौत्र हुआ दादी कहलाई
तुझसे ही है घर में चैन ओ अमन
नारी तेरे हर रूप को नमन ??
डां.अखिलेश बघेल
दतिया ( म.प्र. )