नारी तेरी सदैव ही परीक्षा (महिला दिवस पर विशेष “कविता”)
सभी नारियों के जीवन पर आधारित कविता
दूर गगन की छांव में रह गया मेरा गांव
हरे भरे लहलहाते खेत पिंपल की छांव
बाबुल ब्याह दिया तुने आयी
पिया घर पिछे छोड़
जिंदगी का पहला मोड़
तेरे ही सिखाए रास्तों पर
चल पड़ी मैं नयी डगर
साथ निभाते हुए साजन के साथ
रंगीले रिश्तों की हुई शुरुआत
बाबुल तुने ही कहा था न मुझे
बेटी हर दिन होता न एक जैसा
तेरे ही सिखाए संस्कारों के साथ
कर रही कोशिश आदर्श बहु बनकर
बिना आऊट हुए स्कोर बनाऊ नाबाद
इस दूसरे मोड़ पर जिंदगी के
मेरे कदम लडखडाएंगे तो बाबुल
तो इस जीवन में करती हूं प्रार्थना
तुम आशीर्वाद रूपी आत्मविश्वास
के साथ आंतरिक हिम्मत को बढ़ाना
दस्तुरों का निर्वाह करते हुए
फिर जिंदगी ने ली करवट
मिली ईश्वर से मुझे
पुत्र-पुत्री के रूप में नयी सौगात
जीवन में प्रवेश हुआ एक इतिहास
साजन के संग बनाऊंगी हर पल खास
सभी रिश्तों में रहे खुशियों का एहसास
पलछीन पलछीन बीत रहा है वक्त
अपने व्यवहार से ही करना है सब व्यक्त
उन्हीं संस्कारों के माध्यम से
अपने बच्चों को बनाएं सशक्त
इस आधुनिक युग में बच्चे
सदैव ही रहेंगे व्यस्त
मैं फिर भी रहकर मस्त
बच्चों की शिक्षा व शादी का करूं बन्दोंबस्त
जीवनसाथी के साथ जिंदगी बनाना है जबरदस्त
इन सबके पश्चात बाबुल
आएगा ज़िंदगी का तीसरा-अंतिम पड़ाव
अंतिम पड़ाव ना समझ
बढाऊंगी आगे कदम मिलेगी नई दिशा
क्योंकि यह जीवन ही है
सदैव नारी की परीक्षा
हो मन में विश्वास अटल
जीवन में हर पल होगा सफल
उम्मीदों की डोर बांधे हुए
पार करो मंजिल को हर
लाख मुश्किलें भी हो जाएंगी विफल ।
आरती अयाचित
भोपाल