नारी तुम
नारी तुम इतने रूपों को कैसे जी लेती हो
देकर अमृत की वर्षा क्यों तुम जहर खुद पी लेती हो
नारी तुम इतने इतने रूपों को कैसे जी लेती हो
तुम्हारी शक्ति अपार फिर भी क्यों तुम लाचार
तुम मां तुम पत्नी बहन तुम ही दोस्त
फिर क्यों किसी की पहचान की मोहताज तुम
नारी तुम कोमल तुम शक्ति तुम प्रेम और तुम ही दर्द हो
कैसे इतने एहसासों में मिट जाती हो
नारी तुम इतने रूपों को कैसे जी लेती हो ।