नारी , तुम सच में वंदनीय हो
नारी!तुम सच में वंदनीय हो।
दिव्य भाव रूप रंग सभ्य सृष्टि देवि है।
नारि सभ्य शुद्ध बुद्ध प्रेम दृष्टि देवि है।
आदि अंत हीन नव्य भव्य वृत्ति भाव है।
वंदनीय रागिनी सुहागिनी प्रभाव है।
तुष्ट प्रीति स्नेह स्वर्ग धर्म नीर गंग है।
कर्मशील नेक नम्र नायिका अनंग है।
ज्येष्ठ श्रेष्ठ साधिका सदैव धीर वीर है।
चंद्रमा स्वयं प्रभा देदीप्य रत्न हीर है।
मोहिनी अपार प्यार शारदा स्वरुप है।
विश्व व्योम पालिका सुगंध पुष्प रूप है।
देव सर्व आत्मसात देवि आत्म ज्ञानिनी।
प्रात काल साम्यता विशिष्ट सौम्य मालिनी।
ध्यान प्रेम ज्ञान योग सत्य राह गामिनी।
मर्म नित्य स्तुत्य लोक नर्म गर्म यामिनी।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र,हरिहरपुर,वाराणसी- 221405