नारी तुम्हारी कहानी
नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
नारी तुम केवल स्पर्धा हो।
नारी तुम अन्नपूर्णा हो,
नारी तुम केवल करुणा हो।
नारी तुम कितनी सुंदर हो,
नारी तुम गहरा समंदर हो।
नारी तुम धर्म विश्वास हो,
नारी तुम बुझते की आस हो।
नारी तुम खिलता कमल हो,
नारी तुम महकता गज़ल हो।
नारी तुम सुनहरी धूप हो,
नारी तुम कितनों के रुप हो।
नारी तुम काला टीका हो,
नारी तुम जीने का सलीका हो।
नारी तुम चमकती रौशनी हो,
नारी तुम मीठी चाशनी हो।
नारी तुम खूबसूरती की सूरत हो,
नारी तुम चाहत की मूरत हो।
नारी तुम पावन गंगा हो,
नारी तुम मन की चंगा हो।
नारी तुम तो जन्नत हो,
नारी तुम हर दिल की मन्नत हो।
नारी तुम तो बड़ी अनोखी हो,
नारी तुम तीखी सरीखी हो।
नारी तुम कर्मों का फल हो,
नारी तुम धर्मों का कल हो।
नारी तुम बहती नदी हो,
नारी तुम एक सदी हो।
नारी तुम आँखों का पानी,
नारी तुम घर – घर की कहानी।
नारी तुम खिलखिलाती हँसी हो,
नारी तुम हर चेहरे की ख़ुशी हो।
नारी तुम सदाबहार बसन्त हो,
नारी तुम कितनी ही अनन्त हो।
नारी तुम्हारा सुंदर रूप है,
नारी तुम खिली हुई धूप है।
नारी तेरा हो जयकार,
यही है मेरे दिल की पुकार।
नारी तुमने जो कुछ भी ठान लिया,
फिर दुनियाँ ने भी तुमको मान लिया।
तुम हो सदाचारी और ब्रह्मचारी भी,
तुम हो पुरुष और एक नारी भी।
तुमने जो गर मर्यादाओं को तोड़ा है,
फिर दुनियाँ ने न तुमको छोड़ा है।
शर्मों हया को जो तुमने माना है श्रृंगार,
फिर तो तेरा हो जाएगा बेड़ा पार।
साज – सज्जा को छोड़कर,
अब तू धर ले रफ़्तार।