नारी जीवन सतत एक संग्राम है
नारी जीवन सतत एक संग्राम है
हर किसी का ही जग में ये अंजाम है
नारी जीवन सतत एक संग्राम है
उसको लेकर जनम से ही मरने तलक
ना सुकूँ है कोई और ना आराम है
उम्र सारी वो घर में ही कट जाती है
जाने हिस्सों में कितने वो बँट जाती है
घर में सब का ही जीवन बनाते हुए
एक दिन नारी यूँ ही सिमट जाती है
कहाँ बेटी जनम सबको मिल पाता है
उसका होना कहाँ सबको झिल पाता है
कोख में हत्या की , होती हैं साजिशें
फूल मुश्किल से जगमें ये खिल पाता है
भेड़िये इन सभी को हैं फिर नोचते
उम्र बच्चों तलक की नहीं सोचते
जिसको देखो वही बस रुलाता यहाँ
आँसुओं को हैं कितने यहाँ पोछते
बात करते हैं उनसे सभी प्रेम की
प्रेम करना किसी को भी आता नहीं
यूँ बना कर के देवी तो हैं पूजते
ये मगर दंभ पौरुष का जाता नहीं
जिक्र इज्जत का जब भी कभी आता है
एक भय सा दिलों में समा जाता है
दोष दुष्कृत्य में उसका होता नहीं
फिर भी दोषी उसी को कहा जाता है
फिर भी दोषी उसी को कहा जाता है
सुन्दर सिंह