नारी क्या है
नारी क्या है
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नारी तुम, स्वयं सुधा हो,
जीवन भर बूँद बूँद कर,
गरल का पान करती हो,
स्वयं पीती हो विष ,
अमृत का दान करती हो ।
नारी तुम ,स्वयं श्रद्धा हो,
पर स्वयं जीवन भर ,
तिल तिल अपमान सहती हो,
स्वयं पीती हो ,अपमानित घूँट,
सबको सम्मान देती हो ।
नारी तुम ,स्वयं स्नेहा हो,
पर स्वयं जीवन भर ,
बूँद बूँद स्नेह से वंचित रहती हो,
स्वयं ढूँढती हो नेह,
सबको स्नेह देती हो ।
नारी तुम ,स्वयं आशा हो,
पर स्वयं जीवन भर ,
आशा की किरणों से दूर रहती हो,
स्वयं रहती हो निराशा के भँवर में,
दूसरों मे आशा भरती हो ।
नारी तुम, स्वयं सुमन हो,
पर तुम स्वयं कली की तरह,
हर पल मसली जाती हो,
बाँटती हो सबको सुगंध,
दूसरों को खिलना सिखाती हो!!
नारी तुम्हारा क्या गुणगान करू,
तुम ही नर को जन्म देती हो
स्वयं नर्क में रहकर तुम,
सबको स्वर्ग का सुख देती हो।