नारी के अपमान के दोषी कौन
पाँच महारथी पति थे जिसके
उस द्रौपदि की करुण व्यथा।
द्यूत सभा की हृदय विदारक
बतलाता हूँ सत्य कथा।।
धर्मधुरंधर धर्मराज को
किसने यह अधिकार दिया।
जो अग्निजन्मा कुरुवंश कुलवधू
दांव रूप स्वीकार किया।।
हार गए जब वे द्रौपदि को
दुर्योधन ने अवसर पाया।
उस पांचाली उस कृष्णा का
उपहास था उसने उड़वाया।
अंगराज ने कहा था वैश्या
किया नारी का अपमान था।
उसे द्यूत भवन में बुलाने वाला
दुर्योधन शैतान था।।
जाना जब यह पांचाली ने
व्यथित बहुत हो रोती है।
दुःशासन सम दुःष्ट हृदय में
लाज शर्म सब सोती हैं।।
उसके निर्लज्ज हाथ किसी के
केश पकड़कर लाते हैं।
दौपदी के नैन सिर झुके
पाण्डवों के पाते हैं।।
उनके शौर्य पराक्रम को
झकझोरने का प्रयास किया।
मूढ़जनों ने देख के यह
उन सबका अपमान किया।।
गई महाराज धृतराष्ट्र समक्ष
ले कर मन मे थोड़ी सी आस।
वह तो पहले ही बांधे था
ग्रीवा पर पुत्र मोह की फांस।।
पास गयी कृप द्रोण के वह
उनसे भी सहायता को बोली।
पर वे तो दबाए हुए थे मुँह में
राजनिष्ठा की विषगोली।।
जो श्वेत वस्त्रधारी वरिष्ठ कुरु
भीष्म पितामह अति बलशाली।
उनके मौन ने द्रौपदी की
समस्त आशाएं धो डाली।।
बढ़ा दुःष्ट वह अठ्ठाहस कर
चीर हरण को हाथ बढ़ाए।
सारे मार्ग बंद जब देखे
तब कलमनयन हरि याद आए।।
प्रगटे अदृश्य रूप में मोहन
साड़ी अक्षय हो गई।
बेसुध हो तब गिरा दुःशासन
सभा चीर से भर गई।।
देख दृश्य सब भये चकित अरु
भय व्यापा कौरव दल में।
घरबराये शकुनी सम पापी
अति विस्मय उसके मन में।।
पूरी घटना को देख दुखित हो
उठते महत्वी प्रश्न अनेक।
देख अपनाम निज पत्नी का
क्यों हुए नही सब पाण्डव एक।।
क्यों सम्राट युधिष्ठिर ने
दांव लगाया भार्या को।
क्यों नही बचाया प्रण को तोड़
पितामह ने उस आर्या को।।
अपमान किया कुलमर्यादा का
दुर्योधन अहंकारी ने।
चुपचाप दिया होने सब कुछ
धृतराष्ट्र सिंहासनधारी ने।।
द्रोण और आचार्य कृप के
मुख भी बिल्कुल मौन थे।
द्यूत सभा मे नारी के
अपमान के दोषी कौन थे।।
✍अवधेश कनौजिया©