नारी की है बस यही जिंदगी
“नारी की है बस यही जिंदगी”
नारी की है बस यही जिंदगी, इतना छोटासा है इसका सार।
दुसरो को हमेशा खुशिया देना, खुद के लिए दुखों की भरमार। :-इतने लाड़ लड़ाये जिस पापा ने, जिसने पाल पोष कर बड़ा किया।कुछ साल बाद उसने ही, अपने हाथों से उसे विदा किया।
जिस भाई पर उसने जान छिड़की, जिसके साथ ही खाया साथ ही पिया।उस भाई ने भी राखी के फर्ज को, बस तीज त्यौहार पर अदा किया।
कुछ ना चाहिए इस पगली को, चाहिए है बस थोड़ासा प्यार। नारी की है बस यही जिंदगी,
इतना छोटासा है इसका सार।
:-अग्नि के समक्ष फेरे लेकर, जिसने उसे अपनाया था।
कितनी ही बार उस पतिदेव ने, उसे खून के आंसू रुलाया था।
सिर पर कफ़न बांधकर उसने, जिस बेटे को गोद में पाया था।बुढ़ापे के टाइम वो बेटा, विदेश से फ़ोन पर बतियाया था।
कुछ ना चाहिए इस पगली को, चाहिए था बस थोड़ा साथ।
हमेशा जीयी ये अपनो के लिए, अपनी जिंदगी से किया व्यापार।अपने रास्ते में शहरा होने पर भी, लायी जो सबके लिए बहार। नारी की है बस यही जिंदगी, इतना छोटा सा है इसका सार।।
“सुषमा मलिक”
रोहतक (हरियाणा)
महिला प्रदेश अध्यक्ष कंप्यूटर लैब सहायक संघ हरियाणा