नारी की संवेदना
चण्डी बन जाऊँ
काली कहलाऊँ
शत्रुओ का नाश
करूँ तो दुर्गा कहलाऊँ
बुद्धि विद्या दूँ
वीण। दायिनी कहलाऊँ
धन का भण्डार भरूँ
लक्ष्मी कहलाऊँ
स्तनपान कराऊँ
माँ कहलाऊँ
अग्नि में प्राण
त्याग दूँ
सती कहलाऊँ
पति धर्म निभाऊ
अर्धांग्नि कहलाऊँ
परमात्मा की भक्ति
में लीन हो जाऊँ
मीरा कहलाऊँ
झूठे बेर खिलाऊँ
शबरी कहलाऊँ
देश की कमान संभालूँ
प्रीतिभा पाटिल कहलाऊँ
युद्ध में सर्वनाश करूँ
झाँसी की रानी कहलाऊँ
अपने विचारों को
शब्द में पेश करूँ
कवित्रि कहलाऊँ
कैसे व्यक्त करूँ
अपनी संवेदना
हर परिस्थिति में
स्वयं को अलग हूँ पाती
नारी ही जाने नारी की संवेदना को।।