नारी की वेदना या संवेदना
आज है करवाचौथ सुनो जी, मेरे दिन और रात सुनो जी।
मेरे प्राणो के आधार सुनो जी, मेरे हृदय पुकार सुनो जी।।
ना मांगू मैं सोना चांदी और ना मांगू मैं हीरे मोती।
मैं तो तुम को अपना मानू और यही मांगती जन्म-जन्म जी।।
आज है करवाचौथ सुनो जी, मेरे घर संसार सुनो जी।
मेरे तीज-त्यौहार सुनो जी, मेरे रूप रंग आधार सुनो जी।।
ना मांगू मैं महंगी गाड़ी और ना मांगू मैं महंगी साडी।
मैं तो मांगू तुमको सजना, मेरे साथ सदा ही चलना।।
आज है करवाचौथ सुनो जी, मेरे जीवन सार सुनो जी।
मेरे हक अधिकार सुनो जी, मेरे कृष्ण और राम सुनो जी।।
ना मांगू मैं सुख की यारी और ना मांगू मैं महल अटारी।
ना मांगू मैं दुख की यारी और सदा रहू मैं साथ तुम्हारी।।
आज है करवाचौथ सुनो जी, मेरी प्रीत और रीत सुनो जी।
मेरे मन संगीत सुनो जी, मेरे चर्म उदगीत सुनो जी।।
ना मांगू मैं सूरज चंदा और ना मांगू मैं प्रीत का फंदा।
मैं तो मांगू स्नेह तुम्हारा, मैं तो ममता की हूँ भूखी।।
आज है करवा चौथ सुनो जी, मेरे चित के चोर सुनो जी।
मेरे कुल की रीत सुनो जी, मेरे कुल के मान सुनो जी।।
ना चाहूं मैं सजने जाऊं, ना ही अपना रूप दिखाऊ।
मैं तो खुद ही सजके आऊ, तुमको अपना रूप दिखाऊ।।
आज है करवा चौथ सुनो जी…
“ललकार भारद्वाज”