नारी की लज्जा घूंघट
लम्बा सफर तय किया है
घूंघट तूने
चेहरा न दिखे बस
सबब था तेरा
हर किसी ने बस
चेहरा ढका दिया तेरा
प्रश्न यह है
चेहरा क्यो ढका है
नारी तेरा
बदलाव की लहर
दौड़ रही है
नारी आसमान में
उड़ रही है
सीमा पर
लड़ रही है
पुरूषों के कंधे से कंधा
मिला कर
वह दौड़ रही है
तब भी क्या उम्मीद
करते हो
नारी घूंघट में
मुँह छिपाए
बैठी घर में रहे ?
नारी तुम स्वतंत्र हो
छूने के लिए
आसमां की ऊंचाईयों को
घूंघट तो गहना है
नारी की लज्जा का
नैनो को बनाओ
गहना अपना